"मैं समय हूं, और आज 'महाभारत' की अमर कथा सुनाने जा रहा हूं.... और यह कथा मेरे सिवाय दूसरा कोई सुना भी नहीं सकता... और जब तक मैं हूं, यह महायुद्ध चलता ही रहेगा... और मेरा कोई अंत नहीं.. मैं अनंत हूं.. "....युगों-युगों तक जीवंत रहने वाली इन पंक्तियों को कलम की जादूगरी से अनंत काल तक समय के क्षितिज पर शब्द देने वाला कोई और नहीं, बल्कि महान लेखक, कथाकार, संवाद-शिल्पी डॉ. राही मासूम रज़ा ने महाभारत महाकाव्य को सिनेमाई परंपरा में ढालने के बावजूद सभ्यता और संस्कृति की चाशनी से सराबोर कर दिया.
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